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शनिवार, 24 अक्तूबर 2015

मरीज़े इश्क़ बनने के हुए आसार जाने क्यों



न चाहा फिर भी कर बैठा मैं आँखें चार जाने क्यों
मरीज़े इश्क़ बनने के हुए आसार जाने क्यों

कभी बेटा, कभी शौहर, कभी पापा, कभी नौकर
उलझ कर रह गया है मेरा हर किरदार जाने क्यों

तड़प कर जान दी उसने, जो तेरा नाम जपता था
ख़ुदा तूने उसे देखा नहीं इक बार जाने क्यों

हमें ढ़ूंढ़े नज़र उसकी, हमें ही सोचती हर पल
नहीं करती है हमसे फिर भी वो इक़रार जाने क्यों

सियासत जानती है दर्द जब बेबस किसानों का
नहीं टूटी है अब तक कर्ज का दीवार जाने क्यों

थी मेरे साथ जब वो बूँदें मय से भी नशीली थी
ये सावन आग बरसाता है अब की बार जाने क्यों

नगर ये जागता ही रहता है दिन रात, सुनते हैं
सुने औरत की कोई भी नही चीत्कार जाने क्यों

सभी पन्नों पे बेचे जा रहें सामान औ गैरत
महज़ विज्ञापनों का हो गया अख़बार जाने क्यों

सियायत गर्म होते ही चमक बढ़ जाती है उसकी
बहुत भूखी सी लगती है नई तलवार जाने क्यों

ये आरक्षण जरूरी है, सभी पिछड़ों का हक़ है ये
हुँ हैरां योग्य होते जा रहे बेकार जाने क्यों

कभी इंसाफ़, शिक्षा, फर्ज़ होते थे मगर अब तो
बनी है जाति सत्ता पाने का आधार जाने क्यों

कभी मिल पाऐंगी दोनों किनारे तेरी ऐ सागर

मेरी गुरबत व सुख को सोच पूछे यार जाने क्यों 

                     विमलेन्दु सागर (9818885474)

हमें हर हाल में रिश्ते निभाने याद रहते हैं


भले उनको कटू बातें पूराने याद रहते हैं
हमें हर हाल में रिश्ते निभाने याद रहते हैं

कफ़स में क़ैद होकर भी नही नादां परिंदों को
फंसाया जिसने वो गेंहू के दाने याद रहते हैं

गले मिलकर के रोए थे कभी गुरबत में जो हमसे
वो अपने याद रहते हैं, बेगाने याद रहते हैं

बहुत मशरूफ़ियत है कम हुई यादास्त भी लेकिन 
किसी को याद करने के बहाने याद रहते हैं

जवानी कैसी गुज़री याद है पर खास पल ही बस
मगर बचपन के सारे पल सुहाने याद रहते हैं

थीं कैसी चादरें, थे कैसे बिस्तर, याद है किसको
मगर पापा की बाँहों के सिरहाने याद रहते हैं

किसी से रोज मिलना चुपके चुपके, ऐसे भी दिन थे 
जो हर दिन बुनते थे वो ताने बाने याद रहते हैं

जो भूखे पेट सोए और मिहनत से बने हाकिम
उन्हें फ़ाकाकशी के वो ज़माने याद रहते हैं

मशीनों से जो बनती हैं नए गाने क्षणिक हैं ये
बने थे दिल से जो गाने पूराने याद रहते हैं

दीवाने तो कई आए गए पर सच है ये सागर

भगत, आज़ाद, बिस्मिल से दीवाने याद रहते हैं

                        विमलेन्दु सागर (9818885474)

बुधवार, 30 सितंबर 2015

आज फिर दिन बना गया कोई



ख़्वाब को दफ़्न कर गया कोई
हो गया मुझसे बे वफ़ा कोई

दर्द आँखें बयाँ करें तो करें
मेरे लब पर नहीं गीला कोई

ज़िंदगी गर रही मिलेंगे फिर
बस ये कह कर चला गया कोई

मरते मरते दुआएँ दी उसने
था यक़ीनन ही सिरफिरा कोई

साथ है माँ यहाँ सभी के ही
फिर कहे क्यों न है ख़ुदा कोई

जिस्म से जां बिछड़ गई जैसे
रूठ जाए न इस तरह कोई

बेवफ़ाई भी की वफ़ा के लिए
यूं निभा डाली है वफ़ा कोई

आज फिर उसकी देख ली सूरत
आज फिर दिन बना गया कोई

हाँ यकीं आ गया सज़ा पाकर
सचबयानी है आपदा कोई

मंदिरों मस्ज़िदों की सीढ़ी पर
रोज बिकता रहा ख़ुदा कोई

जी रहा साए में बुजुर्गों के
घर को मंदिर बना रहा कोई

इश्क आबे हयात है सागर

इश्क करके नहीं मरा कोई
            विमलेन्दु सागर (9818885474)

गुरुवार, 20 अगस्त 2015

हजारों रंग हैं इस ज़िंदगी के



उठाओ लुत्फ़ हर पल, हर घड़ी के
हजारों रंग हैं इस ज़िंदगी के

खुशी कुछ कुछ कसैली लग रही है
नतीजा बेमज़ा है बंदगी के

तला दीये का देखो तो कहोगे
अंधेरे से है रिश्ते रोशनी के

ये माना घाव गहरे हैं बदन पर
मगर क्या खूब स्वर हैं बांसुरी के

करो कुर्बान जां को इस वतन पर
तभी संतान होगे भारती के

पुरानी डायरी बतला रही है
हमारे दिन भी थे फ़ाकाकशी के

कई परतें चढ़ाए सूरतें हैं
मगर दीवाने हैं हम सादगी के

सियासत भ्रष्ट है जाने है सागर
रखे उम्मीदें लेकिन बेहतरी के
............. विमलेन्दु सागर

जो मिला, जैसा मिला, कर लो यकीं अच्छा मिला


जो मिला, जैसा मिला, कर लो यकीं अच्छा मिला
है नहीं कोई जिसे जीवन ये मनचाहा मिला

ये हमारा भ्रम है शायद या यही सच्चाई है
जाने क्यों हर शख़्स अंदर से मुझे रोता मिला

एक सूरत ख़्वाब में आती रही वर्षों मेरे
आज तक हमको न कोई शक्ल उस जैसा मिला

देॆखने में था वो बिल्कुल आम लोगों की तरह
उसके घर से पर हमें कुरआन संग गीता मिला

उम्र को है प्यार कितना बचपने से देखिए
हर बुढ़ापे में छुपा मासूम सा बच्चा मिला

है वही झगड़े की बातें और रोना धोना ही
सीरियल में औरतों का मन मगर डूबा मिला

दूसरों के वास्ते सागर लुटाता मोती पर
खुद की खातिर अपना पानी भी उसे खारा मिला
............... विमलेन्दु सागर

बुधवार, 19 अगस्त 2015

आंधियों में शमा जल रही दोस्तोंं

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आंधियों में शमा जल रही दोस्तों
ये ख़ुदा की है कारीगरी दोस्तों

इस क़दर हम जमीं को जलाने लगे
सूखने अब लगी है नदी दोस्तों

सच अकेला बहुत पड़ गया आजकल
जीत होने लगी झूठ की दोस्तों

कृष्ण राधा के हैं या वो मीरा के हैं
और मै.. रो रही रुक्मणी दोस्तों

जो न रोजा रखे, इफ़्तारी करे
वोट की अहमियत है बड़ी दोस्तों

आज भी संस्कारों से लिपटी है वो
सच में है वो कोई बावली दोस्तों

याद करने से पहले ही वो आ गई
बात है ये मगर ख़्वाब की दोस्तों

प्यार जैसा ही कुछ बालपन में हुआ
भूल पाया न उसकी गली दोस्तों

है तमन्ना यही सब तलाशे मुझे
छोड़ जाऊँ मैं वो शायरी दोस्तों

लफ़्ज़ "हम" जैसा सागर नही है कोई
भूल जाओ तेरी या मेरी दोस्तों
......................... विमलेन्दु सागर

रविवार, 21 जून 2015

ये किसने कहा की कमाना मना है



जहां तक हो जोखिम उठाना मना है
मुसीबत से पर हार जाना मना है

शहर है, यहां सबसे अनजान हैं सब
यहाँ कोई रिश्ता बनाना मना है

वो क्या आदमी है बगीचे में जाकर
कहे चिड़ियों से चहचहाना मना है

जो ऊँगली उठाते रहे दूसरों पर
जो खुद पर उठे तिलमिलाना मना है

कुचल दें कारें पिए वो हुए हैं
सड़क की किनारे यूँ सोना मना है

समंदर की फितरत है लहरें उठाना
यहां रेत से घर बनाना मना है

बचाया उसे, उससे कह क्यों रहे हो 
यूँ एहसान करके जताना मना है

ये सागर कहे भीख मांगे कोई
ये किसने कहा की कमाना मना है