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रविवार, 21 जून 2015

ये किसने कहा की कमाना मना है



जहां तक हो जोखिम उठाना मना है
मुसीबत से पर हार जाना मना है

शहर है, यहां सबसे अनजान हैं सब
यहाँ कोई रिश्ता बनाना मना है

वो क्या आदमी है बगीचे में जाकर
कहे चिड़ियों से चहचहाना मना है

जो ऊँगली उठाते रहे दूसरों पर
जो खुद पर उठे तिलमिलाना मना है

कुचल दें कारें पिए वो हुए हैं
सड़क की किनारे यूँ सोना मना है

समंदर की फितरत है लहरें उठाना
यहां रेत से घर बनाना मना है

बचाया उसे, उससे कह क्यों रहे हो 
यूँ एहसान करके जताना मना है

ये सागर कहे भीख मांगे कोई
ये किसने कहा की कमाना मना है

ये किसने कहा दिल में आना मना है



ये किसने कहा दिल में आना मना है
मगर आके दिल तोड़ जाना मना है

जो रूठे तो रूठे मगर छुप गए क्यों
ये समझें की तुमको मनाना मना है

है ताक़ीद हमको मय को है छूना
चलो ज़िद ये छोडो, कहा ना मना है

पहलू से जाओ अभी शब है बाक़ी
कहे चाँद भी तुमको जाना मना है

ग़ज़ल तुम सुनाओ ये ख्वाहिश है शब की
सितारों का दिल तोड़ जाना मना है

है मुमकिन की कोई नमक ही लगा दें
यूँ ही जख्म सबको दिखाना मना है

जो आये तो थोड़ा बरस जा तुन बादल
यूँ ही खामखा गड़गड़ाना मना है

जियो हँसते गाते, कहे सबसे सागर
यूँ खामोश जीवन बिताना मना है

सोमवार, 15 जून 2015

सफर कैसा रहा ये पाँव के छाले बताते हैं




वो जो जोखिम उठाते हैं वो हीं मंज़िल को पाते हैं 
सफर कैसा रहा ये पाँव के छाले बताते हैं

कभी देखा है नंगे पाँव कचरा बीनते बच्चे 
हमें तो नाज़ है उन पर जो मिहनत के खाते हैं

मियाँ इस दौर में सच्ची मुहब्बत भूल जाओ तुम 
घरौंदे रेत के हल्की लहर से टूट जाते हैं

सुकूं से जीने का नुस्ख़ा सिखाया इक लक़ड़हारा 
गुज़ारा बस उसी में करते हैं जो भी कमाते हैं

नज़र आते नही वो आजकल महफ़िल में जाने क्यों
वो जिनकी इक झलक पाने को हम महफ़िल में आते हैं

बुजुर्गों का है जब तक हाथ सर पर हम सलामत हैं
गिरे जो पेड़ से पत्ते वो पल में सूख जाते हैं

वो नादां है समझता है बड़ा वो हो गया जब की 
उसे माँ बाप अब भी प्यार से बेटू बुलाते हैं

कपट, लालच, बेशर्मी, झुठ, गद्दारी बेईमानी
ये सारे दोष नेताओं में ही बस पाए जाते हैं

अमीरी में गरीबी का तो सपना ख़्वाब ही होगा 
गरीबी में अमीरी के तो सपने रोज आते हैं

कभी धोखे मुहब्बत में भी खाके देख लो सागर 
पुराने लोग कहते हैं ये हीं शायर बनाते हैं
.......विमलेन्दु सागर

जीवन था तपता सूरज, थे ठंढ़े साए पापा जी


अपने पापा (स्व. श्याम नारायण दास) को समर्पित एक गज़ल..
....................
हर दिल को प्यारे थे वो, सबको ही भाए पापा जी
जीवन था तपता सूरज, थे ठंढ़े साए पापा जी

सुबह सवेरे मुझको काँधे पर लेकर चल देते थे
गाँव के हर जर्रे से मेरी पहचान कराए पापा जी

घोड़ा बन के मेरी खुशी का लुत्फ़ उठाया पापा ने
"तल मेले धोले" सुनकर मुझको खूब घुमाए पापा जी

दादाजी और दादी माँ जो गुज़र गए वर्षों पहले
अपने दिल से मुझको उनसे भी मिलवाए पापा जी

दुर्गम राहों पर चल कर मंज़िल पाई, पर याद रहा
थाम के ऊंगली मुझको तो चलना सिखलाए पापा जी

उनसे शिक्षा पाकर सब बच्चे मंज़िल तक पहुँच गए
वो ही कहते हैं उनको इन्सान बनाए पापा जी

पापा के दम पर माँ का सारा सपना साकार हुआ
माँ को खुश रखने का हर इक कौल निभाए पापा जी

मुफ़लिस सा जीवन था लेकिन माथे पर थी शिकन नही
थोड़े से रुपयों से घर को खूब चलाए पापा जी

छीना ईश्वर ने मुझसे पापा को पर वो भूल गया
पाता हुँ खुद में उनको, हैं मुझमें समाए पापा जी

मेरे लिये तो ख़ुदा हैं वो, नाज़ करे उनपर सागर
धन दौलत की चाह नही, बस नाम कमाए पापा जी

गुरुवार, 11 जून 2015

हज़रत ए मीर पर गया कोई


इश्क़ की राह पर गया कोई
टूट कर फिर बिखर गया कोई

सादगी फिर से ओढ़ ली उसने
हद से ज्यादा संवर गया कोई

आके ख्वाबों में चूम कर मुझको
सच में हैरान कर गया कोई

मिटटी से मूर्तियां बनाता है
देके उसको हुनर गया कोई

मौत आने का ये भी मतलब है
रूह से फिर बिछड़ गया कोई

इस जमीं पर न नींद आई उसे
इसलिए चाँद पर गया कोई

हिचकियाँ फिर से आ गई मुझको
आज फिर याद कर गया कोई

छू लिया फिर से पांव माता का
पाप से फिर उबर गया कोई

जो गहरी नींद में मै क्या डूबा
कफ़न तक नाप कर गया कोई

जो न मिल पाई गंगा जल उसको
कह के बस माँ गुजर गया कोई

जाने किसके ख़याल में गम था
मैंने टोका तो डर गया कोई

बाद मेरे ये लोग सोचेंगे
शायरी से बह्र गया कोई

सुनके सागर को लोग बोल पड़े
हज़रत ए मीर पर गया कोई 

सागर ने सबकी हक़ीक़त लिखी है


जो किस्मत में मेरी मुहब्बत लिखी है
यक़ीनन जहाँ से अदावत लिखी है

अलग बात है उसने आदाब की है
निगाहों में उसके शरारत लिखी है

कभी याद आने से पहले भी आओ
वो खत में अदा से शिकायत लिखी है

गले से लगी जब तो बिटिया ये बोली
कि पापा के तन पर हरारत लिखी है

अमीरों के हिस्से सियासी इनायत
गरीबों के सर बस क़यामत लिखी है

खुद अब तो बन्दों पे नज़ारे करम कर
बता भी दे कितनी मुसीबत लिखी है

जो पूछा किसी से है क्या मेरी किस्मत
वो बोला कि माथे पे ग़ुरबत लिखी है

करें बच्चे गलती मगर माँ के दिल में
सजा कि जगह पर रियायत लिखी है

पढ़ेंगे न जब तक कहानी ये बच्चे
तो जानेंगे क्या क्या नसीहत लिखी है

जवानों के माथे चमकते है जैसे
वतन कि हिफाज़त शहादत लिखी है

किया सच बयां जब तभी से यकीं था
की किस्मत में मेरे मुसीबत लिखी है

लिखा अपने दिल की तो सबने कहा ये 
कि सागर ने सबकी हक़ीक़त लिखी है