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सोमवार, 15 जून 2015

सफर कैसा रहा ये पाँव के छाले बताते हैं




वो जो जोखिम उठाते हैं वो हीं मंज़िल को पाते हैं 
सफर कैसा रहा ये पाँव के छाले बताते हैं

कभी देखा है नंगे पाँव कचरा बीनते बच्चे 
हमें तो नाज़ है उन पर जो मिहनत के खाते हैं

मियाँ इस दौर में सच्ची मुहब्बत भूल जाओ तुम 
घरौंदे रेत के हल्की लहर से टूट जाते हैं

सुकूं से जीने का नुस्ख़ा सिखाया इक लक़ड़हारा 
गुज़ारा बस उसी में करते हैं जो भी कमाते हैं

नज़र आते नही वो आजकल महफ़िल में जाने क्यों
वो जिनकी इक झलक पाने को हम महफ़िल में आते हैं

बुजुर्गों का है जब तक हाथ सर पर हम सलामत हैं
गिरे जो पेड़ से पत्ते वो पल में सूख जाते हैं

वो नादां है समझता है बड़ा वो हो गया जब की 
उसे माँ बाप अब भी प्यार से बेटू बुलाते हैं

कपट, लालच, बेशर्मी, झुठ, गद्दारी बेईमानी
ये सारे दोष नेताओं में ही बस पाए जाते हैं

अमीरी में गरीबी का तो सपना ख़्वाब ही होगा 
गरीबी में अमीरी के तो सपने रोज आते हैं

कभी धोखे मुहब्बत में भी खाके देख लो सागर 
पुराने लोग कहते हैं ये हीं शायर बनाते हैं
.......विमलेन्दु सागर

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