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गुरुवार, 11 जून 2015

हज़रत ए मीर पर गया कोई


इश्क़ की राह पर गया कोई
टूट कर फिर बिखर गया कोई

सादगी फिर से ओढ़ ली उसने
हद से ज्यादा संवर गया कोई

आके ख्वाबों में चूम कर मुझको
सच में हैरान कर गया कोई

मिटटी से मूर्तियां बनाता है
देके उसको हुनर गया कोई

मौत आने का ये भी मतलब है
रूह से फिर बिछड़ गया कोई

इस जमीं पर न नींद आई उसे
इसलिए चाँद पर गया कोई

हिचकियाँ फिर से आ गई मुझको
आज फिर याद कर गया कोई

छू लिया फिर से पांव माता का
पाप से फिर उबर गया कोई

जो गहरी नींद में मै क्या डूबा
कफ़न तक नाप कर गया कोई

जो न मिल पाई गंगा जल उसको
कह के बस माँ गुजर गया कोई

जाने किसके ख़याल में गम था
मैंने टोका तो डर गया कोई

बाद मेरे ये लोग सोचेंगे
शायरी से बह्र गया कोई

सुनके सागर को लोग बोल पड़े
हज़रत ए मीर पर गया कोई 

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