अपने पापा (स्व. श्याम नारायण दास)
को समर्पित एक गज़ल..
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हर दिल को प्यारे थे वो, सबको ही भाए
पापा जी
जीवन था तपता सूरज, थे ठंढ़े साए पापा
जी
सुबह सवेरे मुझको काँधे पर लेकर चल
देते थे
गाँव के हर जर्रे से मेरी पहचान कराए
पापा जी
घोड़ा बन के मेरी खुशी का लुत्फ़ उठाया
पापा ने
"तल मेले धोले" सुनकर मुझको
खूब घुमाए पापा जी
दादाजी और दादी माँ जो गुज़र गए वर्षों
पहले
अपने दिल से मुझको उनसे भी मिलवाए
पापा जी
दुर्गम राहों पर चल कर मंज़िल पाई,
पर याद रहा
थाम के ऊंगली मुझको तो चलना सिखलाए
पापा जी
उनसे शिक्षा पाकर सब बच्चे मंज़िल
तक पहुँच गए
वो ही कहते हैं उनको इन्सान बनाए पापा
जी
पापा के दम पर माँ का सारा सपना साकार
हुआ
माँ को खुश रखने का हर इक कौल निभाए
पापा जी
मुफ़लिस सा जीवन था लेकिन माथे पर
थी शिकन नही
थोड़े से रुपयों से घर को खूब चलाए
पापा जी
छीना ईश्वर ने मुझसे पापा को पर वो
भूल गया
पाता हुँ खुद में उनको, हैं मुझमें
समाए पापा जी
मेरे लिये तो ख़ुदा हैं वो, नाज़ करे उनपर सागर
धन दौलत की चाह नही, बस नाम कमाए पापा जी

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